हिमाचल प्रदेश राजनीतिक परिप्रेक्ष्य

 


·     राजनीतिक परिप्रेक्ष्य_

1945 ई. तक प्रदेश भर में प्रजामंडलों का गठन हो चुका था। 1946 ई. में सभी प्रजामंडलों को Himalayan Hill State Regional Council - HHSRC में शामिल कर लिया तथा मुख्यालय मंडी में स्थापित किया गया। मंडी के स्वामी पूर्णानंद को अध्यक्ष, पदमदेव को सचिव तथा शिवानंद रमौल (सिरमौर) को संयुक्त सचिव नियुक्त किया। HHSRC के नाहन में 1946 ई. में चुनाव संपन्न हुए, जिसमें यशवंत सिंह परमार को अध्यक्ष पद के लिए चुना गया। जनवरी, 1947 ई. में राजा दुर्गा चंद (बघाट) की अध्यक्षता में शिमला हिल्स स्टेट्स यूनियन की स्थापना की गई।

प्रजामंडल के नेताओं का शिमला में जनवरी, 1948 सम्मेलन हुआ। जिसमें डॉ. यशवंत सिंह परमार ने इस बात पर जोर दिया कि प्रदेश के निर्माण के लिए जनता-जनार्दन का सहयोग तथा दृढ़ संकल्प जरूरी हैl

 

शिवानंद रमौल की अध्यक्षता में जनवरी, 1948 में हिमालयन प्रांत गर्वनमेंट की स्थापना की गई, जिसका मुख्यालय शिमला में था।

 

शिमला हिल स्टेट के राजाओं का सम्मेलन 2 मार्च, 1948 को दिल्ली में हुआ। राजाओं की अगुवाई मंडी के राजा जोगेंद्र सेन ने की थी। 8 मार्च 1948 में शिमला हिल स्टेट के राजाओं ने हिमाचल प्रदेश में शामिल होने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।

 

1948 ई. में सोलन के नालागढ़ रियासत को हिमाचल प्रदेश में शामिल किया गया।

15 अप्रैल 1948 को 30 छोटी-बड़ी रियासतों के विलय के साथ हिमाचल प्रदेश राज्य का उद्भव हुआ। प्रशासन का दायित्व चीफ कमिश्नर को दिया गया। मंडी, महासू, चंबा तथा सिरमौर के रूप में 4 जिलों का गठन हुआ।

हिमाचल के जन्म के समय इसका क्षेत्रफल स्थाई 27,108 वर्ग किलोमीटर था और इसकी आबादी करीब 9,35,000 थी।

 

26 जनवरी 1950 को जब भारत का संविधान लागू हुआ तो उस समय हिमाचल प्रदेश को पार्ट-सी राज्य का दर्जा दिया गया। प्रशासन का दायित्व लेफ्टिनेंट गवर्नर के अधीन सीमित, उत्तरदायी सरकार की स्थापना के साथ दिया गया। नवंबर 1951 में 36 सदस्यीय विधानसभा के लिए चुनाव करवाए गए। जिसमें कांग्रेस को 24 स्थानों पर विजय प्राप्त हुई और 24 मार्च 1952 को डॉ यशवंत सिंह परमार हिमाचल प्रदेश के नवगठित सरकार के पहले मुख्यमंत्री बने। 1 मार्च 1952 को चीफ कमिश्नर के स्थान पर लेफ्टिनेंट गवर्नर की नियुक्ति हुई।

1 जुलाई 1954 को कहलूर रियासत का विलय हिमाचल में बिलासपुर के नाम से पांचवें राज्य के रूप में हुआ। बिलासपुर तथा घुमारवीं नामक दो तहसीलें बनाई गईं।

वर्ष 1954 में भारत सरकार द्वारा राज्य पुनर्गठन कमीशन की स्थापना की गई। इस आयोग के अध्यक्ष फजल अली तथा सदस्यों में एच.एन. कुंजरू और के.एम. पन्निकर थे। आयोग के दोनों सदस्यों ने हिमाचल प्रदेश का विलय पंजाब में करने की इच्छा जाहिर की जबकि अध्यक्ष फजल अली इस पहाड़ी क्षेत्र के लिए अलग राज्य का के प्रावधान के पक्षधर थे।

 

आयोग की रिपोर्ट से हिमाचल की पंजाब में विलय की भयावह स्थिति से बचने के लिए डॉ. यशवंत सिंह परमार द्वारा भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को सहमत करवाने के लिए विधानसभा तक भंग करने के जैसा साहसिक निर्णय ले लिया।

 

इस तरह से 1 नवम्बर 1956 को हिमाचल प्रदेश केंद्रशासित प्रदेश बना। प्रशासन का दायित्व राज्यपाल को दिया गया।

 

1 मई, 1960 को छठे जिला के रूप में किन्नौर अस्तित्व में आया। इस जिला में महासू जिला की चीनी तहसील तथा रामपुर तहसील को 14 गांव शामिल किए गए। कल्पा, निचार और पूह तीन तहसीलें बनाई गईं। लेकिन हिमाचल प्रदेश का केंद्र शासित प्रदेश का अस्तित्व जारी रहा।

 

वर्ष 1963 में प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने भारतीय संसद में कहा, "यह उचित होगा कि हम अधूरे मन से निर्णय न लें और जनप्रतिनिधियों को जो अधिकार हम देना चाहते हैं, दे देने चाहिए ताकि वे अपना प्रशासन स्वंय चला सके"।

 

सरकार ने केंद्र शासित अधिनियम-1963 पारित किया तथा हिमाचल प्रदेश की क्षेत्रीय परिषद को विधानसभा में बदल दिया गया। डॉ यशवंत सिंह परमार के नेतृत्व में पुनः 1 जुलाई 1963 को सरकार बनाई गई।

1 नवंबर 1966 को कांगड़ा, कुल्लू, लाहौल-स्पिति, शिमला, नालागढ़, कंडाघाट, ऊना, डलहौजी आदि क्षेत्र हिमाचल प्रदेश में सम्मिलित किए गए।

 

1966 में पंजाब राज्य के पुनर्गठन के साथ, चार और पहाड़ी जिले अर्थात् कांगड़ा, कुल्लू, लाहौल-स्पीति और शिमला अस्तित्व में आए।

24 जनवरी 1968 को हिमाचल प्रदेश विधानसभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया,"यह सदन गंभीरतापूर्वक यह अनुभव करता है कि अब समय आ गया है जब हमें पूर्ण राजत्व का अधिकार दिया जाना चाहिए। इस लक्ष्य की पूर्ति हेतु केंद्रीय नेतृत्व तथा केंद्र सरकार बिना समय बर्बाद किए हिमाचल को पूर्ण राज्य प्रदान करने का प्रस्ताव पारित करें"।

31 जुलाई, 1970 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा में हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की घोषणा की।

 

18 दिसंबर 1970 को हिमाचल राज्य अधिनियम पारित कर दिया गया।

 

25 जनवरी 1971 को हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ और यह भारत का 18वां राज्य बना।

 

1 नवम्बर 1972 को कांगड़ा ज़िले के तीन ज़िले कांगड़ा, ऊना तथा हमीरपुर बनाए गए। महासू ज़िला के क्षेत्रों में से सोलन ज़िला बनाया गया। वर्तमान हिमाचल प्रदेश 12 जिलों में विभक्त है।

 

भारत में अन्य राज्यों की तरह हिमाचल प्रदेश राज्य के राज्यपाल, केंद्र सरकार की सलाह पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होते है। मुख्यमंत्री कार्यकारी शक्तियों के साथ सरकार का मुखिया होता है। विधानसभा, सचिवालय भवन और हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय शिमला में स्थित है।

 

वर्तमान हिमाचल प्रदेश विधानसभा एकसदनीय है। 2008 के परिसीमन के बाद से हिमाचल प्रदेश विधानसभा के लिए कुल 68 सीटों पर चुनाव होते हैं। विधानसभा की 48 सीटें सामान्य वर्ग, 17 निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति और 3 निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं। हिमाचल प्रदेश में लोकसभा की 4 तथा राज्यसभा की 3 सीटें हैं। हिमाचल प्रदेश के कुल 7 सांसद चुने जाते हैं।

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डा. यशवंत सिंह परमार जनवरी 1977 तक हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उनके बाद श्री ठाकुर रामलाल 28 जनवरी 1977 से 30 अप्रैल 1977 तक हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। वर्ष 1977 में प्रदेश में जनता पार्टी चुनाव जीती और श्री शांता कुमार प्रथम गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने।

 

वर्ष 1980 में ठाकुर राम लाल पुनः मुख्यमंत्री बने। 8 अप्रैल 1983 को उनके स्थान पर श्री वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया। 1985 के चुनाव में वीरभद्र सिंह नेतृत्व में कांग्रेस (ई) पार्टी को भारी बहुमत मिला और श्री वीरभद्र सिंह पुनः मुख्यमंत्री बने।

 

वर्ष 1990 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी और शांता कुमार दुबारा मुख्यमंत्री बने। 15 दिसम्बर 1992 को राष्ट्रपति के अध्यादेश द्वारा भाजपा सरकार और विधानसभा को भंग कर दिया गया। हिमाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया। प्रदेश में दुबारा चुनाव कराए गए और श्री वीरभद्र सिंह एक बार फिर से मुख्यमंत्री बन गए।

वर्ष 1998 के चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा तथा सत्ता की चाबी भाजपा के हाथ में चली गई और हमीरपुर जिला से संबंध रखने वाले प्रो. प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री बने।

 

वर्ष 2003 के चुनावों में भाजपा की हार हुई तथा कांग्रेस की सत्ता वापसी के साथ श्री वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बने।

वर्ष 2007 में प्रदेश की जनता ने भाजपा को समर्थन देकर सत्ता वापसी करवाई तथा प्रो. प्रेम कुमार धूमल दूसरी बार मुख्यमंत्री बने।

 

वर्ष 2012 प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तथा श्री वीरभद्र सिंह छठी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

 

वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव भाजपा ने प्रो० प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में लड़ा। इस चुनाव में प्रो. प्रेम कुमार धूमल खुद चुनाव हार गए लेकिन हिमाचल प्रदेश में भाजपा की सरकार बनवाने में सफल हुए। 

वर्ष 2017 के चुनावों में प्रदेश की जनता ने भारतीय जनता पार्टी को समर्थन देकर सत्ता वापसी करवाई तथा हिमाचल की बागडोर मण्डी ज़िला के सराज विधानसभा क्षेत्र से पांच बार रहे विधायक श्री जयराम ठाकुर को सौंपी। हिमाचल के इतिहास में यह पहली बार है जब मण्डी ज़िले से कोई मुख्यमंत्री बना है।


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