कोरोना काल और पर्यावरण
कोरोना काल और पर्यावरण दिवस
यह लेख हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक सेवा
General Studies Paper - 03,
Unit -03, Sub - Unit - 03 से संबंधित है
लेख पर आधारित प्रश्न
1. हिमाचल प्रदेश में बढ़ता प्रदूषण किस तरह से इस पहाड़ी प्रदेश के लिए खतरा बन रहा है। वर्णन करें?
2. हर वर्ष पर्यावरण दिवस तो बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। लेकिन धरातल पर दो-चार दिनों में ही इसकी चमक धमक धीमी पड़ना शुरू हो जाती है। अपने विचार व्यक्त करें?
इस समय पूरी दुनिया वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से ग्रस्त है। विश्व की बड़े शक्तिशाली व विकसित देश भी इस महामारी के आगे नतमस्तक हो चुके हैंl ऐसे में मानव जीवन चारदीवारी में कैद है। सरकार द्वारा भी यही दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं कि यदि अति आवश्यक हो तभी अपने घर से बाहर निकले अन्यथा अपने आप तथा अपने परिवार को सुरक्षित रखने के लिए कुछ समय तक सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क, सैनिटाइजर तथा स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहकर अपनी रक्षा स्वयं करने की आदत विकसित करेंl ऐसी परिस्थिति में मानव को अपना गांव याद आ रहा हैl आधुनिकता की अंधी दौड़ में लीन मानव गांव की ओर आने के लिए उतारु हैl शायद इस जानलेवा महामारी के बीच में मानव को ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यदि वह अपने गांव में पहुंच गया तो वह इस वैश्विक महामारी से अपने आप को बचा पाएगाl ऐसे में ग्रामीण परिवेश की सुख-सुविधाओं, पर्यावरण, वंयजीव, पक्षियों इत्यादि का स्मरण स्वत: ही जहान में उत्पन्न हो जाता हैl
इस महामारी के बीच में ही 5 जून 2020 का दिन आया जिसे "अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस" के रूप में मनाया जाता हैl मानव जीवन के ऊपर आए इस संकट की उपज के कारणों तथा भविष्य के लिए उत्पन्न हुए संकट पर वार्तालाप करना समय की मांग बन चुका हैl कोरोना वायरस से देश की जनता को बचाने के लिए लॉक डाउन, कर्फ्यू जैसे कारगर तरीके को अपनाना पड़ाl जिसके कारण मानव-जीवन की विभिन्न गतिविधियां प्रभावित हुईl लेकिन प्रकृति को बड़ी राहत मिलीl भारत के विभिन्न क्षेत्रों में ऐसी दृश्य देखने को मिले जो कि इतिहास के पन्नों में ही समा चुके थेl पंजाब के जालंधर क्षेत्र से हिमाचल प्रदेश के "धौलाधार" की तस्वीरें साफ दिखने लगीl देश के विभिन्न भागों में वन्य प्राणियों, पक्षियों के अद्भुत झुंड सड़कों पर चलते दिखेl वही देश की राजधानी दिल्ली जैसे अत्याधिक जनसंख्या घनत्व वाले केंद्रशासित प्रदेश में भी स्वच्छता का दीदार संभव हो पायाl वही गंगा नदी जिस पर सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर रही थी। लॉक-डाउन के दौरान उसकी जलधारा भी स्वच्छ दिखीl ऐसे परिप्रेक्ष्य में इस वर्ष के पर्यावरण दिवस को सेलिब्रेट करने का औचित्य अपने आप में विशेष है।
इस दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष 1972 में की थी। इसे 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा के बाद शुरू किया गया था। 5 जून 1974 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया।लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरुक और संवेदनशील बनाने के उद्देश्य से हर साल पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। धरती पर लगातार बेकाबू होते जा रहे प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग जैसे कारणों के चलते वर्ल्ड "एनवायरनमेंट डे" की शुरूआत हुई थी। हर वर्ष एक नए थीम के साथ पर्यावरण दिवस को मनाया जाता है। वर्ष 2020 में मनाए जाने वाले पर्यावरण दिवस का थीम है - प्रकृति के लिए समय' (Time for Nature) इसका मकसद पृथ्वी और मानव विकास पर जीवन का समर्थन करने वाले आवश्यक बुनियादी ढांचे को प्रदान करने पर ध्यान दिया जाएl शायद करोना वायरस के समय काल में प्रकृति के साथ समय व्यतीत करने का मानव को काफी लंबे समय के बाद ऐसा सुअवसर प्राप्त हुआ है। लेकिन आज का मानव डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपने आप को सजग व सुरक्षित महसूस पाता है। ऐसे में शायद इस वर्ष का पर्यावरण दिवस भी डिजिटल दुनिया के माध्यम से ही देश व प्रदेश के अधिकतर जनता मनाएगीl कोई बुराई नहीं है कि मानव डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से प्रकृति के उत्थान व मानव जीवन को सुगम बनाने के मार्ग को प्रशस्त करेंl लेकिन कहीं न कहीं मानव ने अपने सुखों व लालच की पूर्ति के लिए प्रकृति के साथ अनेकों अन्याय किए है जो कि मानव के अस्तित्व के लिए ही घातक साबित हो रहे हैं।आज का कोरोनावायरस भी मानव द्वारा प्रकृति के साथ की गई छेड़छाड़ का ही परिणाम है। जब मानव ने अपनी भूख को खत्म करने के लिए जंगली व वन्य प्राणियों को अपने भोजन में सम्मिलित करने का दुस्साहस किया तो वह यह भूल गया कि कहीं जाने-अनजाने में यही जंगली जानवर उसके जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा बनकर उबर सकते है। यही मानव की सबसे बड़ी भूल आज वैश्विक स्तर पर मानव के अस्तित्व को समाप्त करने को उतारू दिख रही है। कुछ ऐसा ही परिदृश्य कोरोनावायरस के उद्भव में भी देखने को मिलता है। कोरोनावायरस के उत्पन्न होने का सर्वमान्य तथ्य यह है कि यह वायरस चमगादड़डो तथा जंगली जानवरों के सेवन करने के कारण मानव में आया और काफी हद तक यह सत्य भी साबित हुआ है तो ऐसे में मानव को यह सबक प्रकृति ने जरूर सिखाया है कि यदि प्रकृति के साथ अवैध छेड़छाड़, अप्राकृतिक चीजों का सेवन व दिनचर्या को अपनाएंगे स्वत: ही एक दिन नष्ट हो जाएंगेl
भारत के मानचित्र पर कभी हिमाचल प्रदेश जैसे प्राकृतिक संपदा से समृद्ध राज्य, स्वच्छ हवा, ऋषि-मुनियों की तपोभूमि तथा देवभूमि की उपमा से विश्वविख्यात थे लेकिन वर्तमान समय में यह पावन धरा भी प्रदूषण की चपेट में आ चुकी है।हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी क्षेत्र में भी प्रदूषण बेलगाम हो चुका है। गत वर्ष नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा हिमाचल प्रदेश सहित देश के 22 राज्यों के सबसे प्रदूषित 102 शहरों की सूची जारी की हैI जिसमें भारत के छोटे से राज्य हिमाचल प्रदेश के 07 शहर शामिल हैI ये शहर पौंटा-साहिब, कालाअम्ब, बद्दी, परमाणु, नालागढ़ डमटाल तथा सुंदर नगर हैI भारत के क्षेत्रफल का 1.7% हिमाचल प्रदेश में अवस्थित हैI यहां पर देश की जनसंख्या का महज 0.57% जनमानस ही निवास करता हैI इतनी कम जनसंख्या वाले राज्य में प्रदूषण का बढ़ना हैरतअंगेज करने वाला हैI वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रदेश इतना प्रदूषित हो गया की नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को प्राकृतिक संपदा को बचाने के लिए आगे आना पड़ रहा हैI ऐसे परिप्रेक्ष्य में हिमाचल के हालात चिंताजनक हो जाते हैं, क्योंकि देश के बड़े राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात तथा तमिलनाडु की स्थिति भी हिमाचल से बेहतर हैI इस छोटे से प्रदेश को प्रकृति से अनेकों उपहार स्वरूप मिले हुए हैंI प्रदेश की भौगोलिक स्थिति समुद्र तल से 350 मीटर से 7000 मीटर के बीच में समाई हुई हैI जिसमें शिवालिक पर्वत, धौलाधार पर्वत श्रेणी, पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला तथा बृहत हिमालय में स्थित जाकर पर्वत श्रृंखला प्रदेश को प्राकृतिक दृष्टि से समृद्ध बनाती हैI इस रेंज में अपार औषधियों पौधों की प्रचुरता हैI भौगोलिक दृष्टि से समृद्ध राज्य में यदि प्रदूषण अनियंत्रित बीमारी की तरह बढ़ फैल रहा हो तो कहीं-न-कहीं मानव को इस स्थिति के लिए अपने आप को जिम्मेवार मानना होगाI प्रदेश के सोलन जिला में बद्दी, बरोटीवाला, नालागढ़ तथा सिरमौरका पौंटा साहिब, कालाअंब औद्योगिकरण की वजह से विषैले हो चुके हैंI इन उद्योगों से निकलने वाले विषैले केमिकल, गैसे तथा प्रदूषित जल आज हमारे नदी नालों में जहार घुल रहा है, जिससे किसानों की खेती भी जहरीली हो गई हैI इन्हीं उद्योगों से निकलने वाला विषैला कचरा कई बार मीडिया में भी सुर्खियों में रहा है, लेकिन महज एक दो दिन खबर बनने के बाद सारी घटनाएं ठंडे बस्ते में चली जाती हैI कुछ ऐसी ही चमक-दमक तथा जागरूकता पर्यावरण दिवस पर देखने को मिलती है पर्यावरण दिवस के दिन सोशल मीडिया तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म पर पोस्टर, वॉलपेपर, स्लोगन्स, चुटकुुुले तथा कविताओं के माध्यम से अनेकों पर्यावरण को जागरूक करने वाले संदेश मिल जाते हैं लेकिन कुछ ही दिनों में यह सब कुछ ईद का चांद हो जाता हैl यही हाल सरकारी, कालेजों तथा कार्यालयों में पर्यावरण दिवस के दिन देखने को मिलता है। इस आदत को बदलना होगा हमें निरंतर पर्यावरण को बचाने का प्रयास करना होगा यदि पर्यावरण सुरक्षित रहेगा तभी मानव धरा पर अपना जीवन-यापन सुख जीवनयापन सुख समृद्धिता से कर पाएगा l
(लेखक के निजी विचार है)
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