हिमाचल प्रदेश सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य
सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य_
हिमाचल प्रदेश एक
बहुसांस्कृतिक और बहुभाषी राज्य है। विविधताओं में एकता प्रदेश के चप्पे-चप्पे में
देखी जा सकती है। प्रदेशवासी अनेक भाषाओं को जानते हैं लेकिन मुख्य रूप से पहाडी तथा हिंदी में ही वार्तालाप तथा लेखन किया
जाता है।
हिंदू धर्म राज्य का
मुख्य धर्म है। हिंदू संस्कृति और परंपरा प्राचीन इतिहास से यहां फली-फूली है।
हिमाचल प्रदेश हिंदू
भगवान और देवी देवताओं की पावन भूमि रही है। यहां लोगों का जीवन देवी-देवताओं के
इर्द-गिर्द घूमता है।
हिमाचल के लोगों के जीवन में त्योहारों का एक महत्वपूर्ण स्थान है।
हिमाचल के लोग बड़े उत्साह के साथ स्थानीय त्योहारों और मेलो में भाग लेते हैं।
अधिकांश मेले और
त्यौहार विभिन्न मौसमी परिवर्तनों से जुड़े
हुए है। प्रत्येक त्यौहारों की शुरुआत के साथ बहुत सी लोक कथाए भी जुड़ी है। ये
मेले हिमाचल में ग्रामीण जीवन, मान्यताओं और लोकप्रिय रिवाजों में स्पष्ट झलक दिखाते हैं।
प्रत्येक जिले में वार्षिक मेलो का आयोजन होता है जो उस क्षेत्र
की ऐतिहासिक और सामाजिक पृष्ठभूमि से जुड़ा होता है।
हि. प्र. का संगीत और नृत्य_
हिमाचलवासी नृत्य और
संगीत के शौकीन हैं और ये हिमाचल प्रदेश की संस्कृति के कण-कण में
विद्यमान है। प्राचीन वाद्य यंत्रों के साथ संगीत ध्वनि का समागम हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देता है। हिमाचल प्रदेश में सामूहिक
नृत्य भी बहुत लोकप्रिय है।
प्राचीनकाल से चली
आ रही दैवीय परंपरा अभी तक हिमाचलवासियों ने
संजोकर रखी है। विभिन्न तरह के आयोजनों पर देवताओं को विशेष निमंत्रण दिया जाता है
तथा उनकी पूजा पाठ से ही कार्यक्रमों की शुरुआत होती है।
देव यंत्रों की धुनों पर संगीत
व नृत्य किया जाता है। प्रदेश में जन्म से लेकर जीवन के विभिन्न पड़ावो
में संगीत तथा नृत्य का विशेष स्थान है। जन्म संस्कार, विवाह संस्कार, पूजा-
अर्चना मेलो तथा त्योहारों में संगीत तथा नृत्य सबका मन मोह लेते हैं।
कांगड़ा की चित्रकला, कुल्लू का शॉल तथा पहाड़ी टोपियां तथा चंबा रुमाल
विश्व विख्यात है।
हि. प्र. की विविध जानकारियां_
हि. प्र. में बढ़ता बर्फ का दायरा - सतलुज, रावी, व्यास और चिनाव
बेसिन में 2017-18 की तुलना में 2018-19 में 25.16% बर्फीला क्षेत्र बढ़ गया है।
हिमाचल काउंसिल फॉर साइंस टेक्नोलॉजी एंड एनवायरमेंट (हिमकास्ट) की ओर से
स्टेट सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंज और स्पेस एप्लीकेशन सेंटर इसरो अहमदाबाद की मदद से
करवाए गए सर्वे में यह जानकारी प्राप्त हुई है।
हि. प्र. के सपूत भारतीय सेना में - वर्तमान
में हिमाचल प्रदेश के करीब 61,500 जवान भारत की तीनों सेनाओं में कार्यरत है। करीब 1,53,813 पूर्व सैनिक है। इनमें से 192 अति विशिष्ट
सेना मेडल, 876 अन्य वीरता मेडल सहित कुल 1068 मेडल पर प्रदेश
के वीर जवान प्राप्त कर चुके हैं।
वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध
में 52 हिमाचली जवानों ने देश की सुरक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर किए थे।
जिसमें सर्वाधिक कांगड़ा जिला के जवान शहीद हुए।
हिमाचल प्रदेश के पालमपुर, जिला कांगड़ा के विक्रम बत्रा को मरणोपरांत देश का पहला परमवीर चक्र प्राप्त हुआ तथा बिलासपुर निवासी संजय कुमार को भी कारगिल युद्ध 1999 में सराहनीय कार्य के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
हिमालय राज्यों का सम्मेलन_
हिमालय राज्यों का
वन संपदा को बचाने के लिए एक सम्मेलन मसूरी, उत्तराखंड में आयोजित किया गया है।
इस सम्मेलन में
उत्तराखंड, मेघालय, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम,
सिक्किम तथा त्रिपुरा के मुख्यमंत्रियों तथा उनके प्रतिनिधियों
द्वारा भाग लिया गया।
इस सम्मेलन में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी हिस्सा
लिया तथा वातावरण को बचाने में हिमालयी राज्यों से भरपूर योगदान देने का आग्रह
किया।
हिमालयन
पारिस्थितिकी को सुरक्षित रखने के लिए दीर्घकालिक
रणनीति तैयार करने की जरूरत है। हिमाचल प्रदेश हिमालय राज्यों में
प्रमुख स्थान रखता है।
हिमाचल प्रदेश में करीब 66 फ़ीसदी वन क्षेत्र है। हिमाचल में डेढ़ लाख
करोड रुपए की वन संपदा है।
प्रदेश में वनों के कटान पर प्रतिबंध है। सरकार को सालाना बनो के रख-रखाव पर करोड़ों रुपए खर्च करने पड़ते हैं। राज्य को परिस्थितिकीय रूप से व्यवहारिक और वन क्षेत्र में वैज्ञानिक तौर पर वृद्धि की अनुमति मिलती है तो कई करोड़ का अतिरिक्त वार्षिक राजस्व हासिल किया जा सकता है।
हिमाचल प्रदेश अवार्ड_
हिमाचल प्रदेश से
संबंध रखने वाले हॉकी खिलाड़ी चरणजीत सिंह
तथा कबड्डी खिलाड़ी अजय ठाकुर को पदम श्री
से सम्मानित किया गया है।
हिमाचल प्रदेश के 9 खिलाड़ियों को अर्जुन पुरस्कार प्राप्त हुआ है - सुमन रावत (एथलेटिक्स), सीता गोसाई (हॉकी), समरेश जंग (शूटिंग), विजय कुमार (शूटिंग), बीएस थापा (बॉक्सिंग), दीपक कुमार (हॉकी), मोहिंदर पाल (शूटिंग), अजय ठाकुर(कबड्डी) तथा अंजुम मुदिगल (निशानेबाजी)। इसके अतिरिक्त 36 खिलाड़ियों को राज्य स्तरीय परशुराम पुरस्कार दिया जा चुका है।
लोकायुक्त
एक्ट
हिमाचल में पहली बार लोकायुक्त एक्ट- 1983 में आया।
राष्ट्रपति ने हिमाचल प्रदेश लोकायुक्त एक्ट - 2014 को मंजूरी दी थी।
लोकायुक्त एक्ट में संशोधन के साथ सशक्त बनाने के लिए तत्कालीन भाजपा
सरकार ने 2011 में राष्ट्रपति को भेजा, लेकिन मंजूरी नहीं मिली थी।
वर्ष 2012 में प्रदेश में कांग्रेस सत्ता में आई तथा बजट
सत्र 2013 में संशोधित बिल लाया गया। जिसे शीतकालीन सत्र धर्मशाला में विपक्ष द्वारा विरोध करने पर वापस ले लिया
गया।
फिर वर्ष 2015 के बजट सत्र में संशोधन के साथ विधानसभा में
पास किया, जिस पर 30 जून 2015 को राष्ट्रपति
ने मंजूरी दी थी।
लोकायुक्त थाने: प्रथम चरण में शिमला, धर्मशाला व मंडी में स्थापित किए जाएंगे।
आयुक्त थाना में ही प्रीवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट- 1988 (केंद्र) और 1983
(राज्य) के तहत केस दर्ज हो सकते हैं। साथ ही कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर एक्ट-1973
के तहत पुलिस स्टेशनों की प्रक्रिया चलेगी।
हिमाचल प्रदेश लोकायुक्त में तीन बार संशोधन के बाद लागू हुआ। जस्टिस एल.एस. पांटा लोकायुक्त रहे हैं। उनका कार्यकाल फरवरी 2017 को खत्म हो गया था। तब से यह पद रिक्त है। पहले लोकायुक्त के पास जांच एवं अभियोजन की शक्तियां नहीं होने से कई मामलों पर सुनवाई नहीं हो पाती थी।
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