भारत-चीन सीमाओं पर उत्पन्न हुए विवाद के कारण हिमालय पर्वत के लिए अलग रेजीमेंट का होना कितना आवश्यक है?
भारत-चीन सीमाओं पर उत्पन्न हुए विवाद के कारण हिमालय पर्वत के लिए अलग रेजीमेंट का होना कितना आवश्यक है?
क्या हिमाचल जैसे पहाड़ी प्रदेश के पास अपनी रेंजमेंट होनी चाहिए?
उत्तर: हिमालय पर्वत पर लेह, लद्दाख, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के साथ लगती सीमा पर जब-जब चीन अपना वर्चस्व को फैलाने की कोशिश करता है, तब-तब देश को आभास होता है कि इन क्षेत्रों में इतनी ऊंचाई पर बर्फ में, ढलानों पर और नदियों पर खतरनाक भौगोलिक परिस्थितियों में ऐसे क्षेत्रों में युद्ध लड़ना कितना कठिन है। इसके लिए ऐसी रेजिमेंट की स्थापना अत्यंत आवश्यक लगती है जो ऐसे क्षेत्रों में रहने वाले नौजवान लोगों पर आधारित हो जो ऐसी ही कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में पैदा हुए और रहते हैं। ऐसे जवानों पर आधारित सेना की रेजिमेंट इन कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में अधिक सहजता के साथ देश की सीमाओं की सुरक्षा कर सकती है।
जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश तक के सभी हिमालयी राज्यों के पहाड़ी क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए हिमालय पर्वत के नाम पर हिमालयन रेजिमेंट की स्थापना समय की मांग बन चुकी है जिसके जवानों को पहाड़ पर तैनाती से पहले महीना भर लेह आदि में ले जाकर नई जलवायु का अभ्यस्त बनाने की आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि वे ऐसे ही भौगोलिक परिस्थितियों और मौसम में रहने के अभ्यस्त होते हैं।
हिमाचल प्रदेश के किन्नौर तथा लाहौल स्पीति जिले की काफी लंबी सीमाएं चीन के साथ सांझा है और इस क्षेत्र पर चीन के घुसपैठ को रोकने के लिए विपरीत भौगोलिक परिस्थितियों की भलीभांति समझ रखने वाले सैनिकों की अति आवश्यकता हैै। इस कृत्य को सबसे बेहतर ढंग से करने की योग्यता हिमाचली युवाओं में दिखती हैं क्योंकि हिमाचल के हर तीसरे घर से भारतीय सेना में एक सैनिक कार्यरत है। देश का प्रथम परमवीर चक्र और अन्य वीरता पुरस्कार तथा कारगिल संघर्ष में चार में से दो परमवीर चक्र
हिमाचल प्रदेश को प्राप्त हुए थे और आपरेशन विजय में हमारे 52 जवान व अधिकारी शहीद होते हैं तो फिर हिमाचल के नाम पर रेजिमेंट क्यों नहीं? ऐसे में हिमाचली वीर जवानों की शहादत को सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए भी हिमाचल प्रदेश में अपनी एक अलग रीसेंट का होना अति आवश्यक है।
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